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ग़ज़ल
ये मन-भावन सा अपना-पन जाने कहाँ से लाते हो
जब आते हो दिल का टुकड़ा एक चुरा ले जाते हो
जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर
ग़ज़ल
नील-गगन के रंग-भवन में है अपने पीतम का बास
हम धरती पर आशाओं की सेज सजाए बैठे हैं
तुफ़ैल होशियारपुरी
ग़ज़ल
हिन्द वीरान हुआ हम को ही 'मख़फ़ी' रख कर
उठो इस उजड़े गुलिस्ताँ में बहाराँ कर दें
सईदा जहाँ मख़्फ़ी
ग़ज़ल
तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम