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ग़ज़ल
मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे
मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
छोड़ कर जाना तन-ए-मजरूह-ए-आशिक़ हैफ़ है
दिल तलब करता है ज़ख़्म और माँगे हैं आ'ज़ा नमक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़्र माँगे जो गुलिस्ताँ से ख़ुदा-वन्द-ए-जहाँ
साग़र-ए-मय में लिए ख़ून-ए-बहाराँ चलिए