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ग़ज़ल
तू ने कितना फ़र्क़ ऐ बेताबी-ए-दिल कर दिया
साँस लेना भी वुफ़ूर-ए-ग़म से मुश्किल कर दिया
साक़िब कानपुरी
ग़ज़ल
हाल मेरा मेहरबाँ तू यूँ सर-ए-महफ़िल न पूछ
राज़ है ये दोस्त का क्यूँ हो गया ग़ाफ़िल न पूछ
समिया नसीम
ग़ज़ल
उसी ने प्यार बख़्शा और उसी ने बंदगी बख़्शी
मिरे मालिक ने मुझ को इस जहाँ की हर ख़ुशी बख़्शी
गुरचरन मेहता रजत
ग़ज़ल
बग़ावत करना चाहूँ तो कभी इंकार मत करना
शरारत करना चाहूँ तो कभी इंकार मत करना
माणिक विश्वकर्मा नवरंग
ग़ज़ल
नहीं होता जहाँ कुछ भी ख़याल-ए-ख़ाम होता है
उसे सुनता नहीं कोई जो क़िस्सा 'आम होता है
माणिक विश्वकर्मा नवरंग
ग़ज़ल
अजब बे-कैफ़ है रातों की तन्हाई कई दिन से
किसी की याद भी दिल में नहीं आई कई दिन से
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाए क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-जौर पे थोड़ी सी जफ़ा और सही
इस क़दर ज़ुल्म पे मौक़ूफ़ है क्या और सही