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ग़ज़ल
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
आँखों में दर्द-मंदी होंटों पे उज़्र-ख़्वाही
जानाना वार आई शाम-ए-फ़िराक़-ए-याराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तुम्हारे ग़म ने ही बख़्शी है हम को ये हुनर-मंदी
हमें अश्को को अब मोती बनाना ख़ूब आता है
चाँदनी पांडे
ग़ज़ल
मंडी ने लूट लीं जवाँ-फ़स्लें किसान की
क़र्ज़े ने ख़ुद-कुशी की तरफ़ ध्यान कर दिया