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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ऐसी मंतिक़ से तो दीवानगी बेहतर 'अकबर'
कि जो ख़ालिक़ की तरफ़ दिल को झुका ही न सके
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हम तेरी सिखाई मंतिक़ से अपने को तो समझा लेते हैं
इक ख़ार खटकता रहता है सीने में जो पिन्हाँ होता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ताहिर फ़राज़
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ये मंतिक़ कौन समझेगा कि यख़-कमरे की ठंडक में
मिरे अल्फ़ाज़ के मल्बूस शो'ला-बार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
कलाम-ए-नुक़्ता-ए-इल्म मुख़्तसर है सब मआनी का
बयान-ए-मंतिक़-ए-दर्सी कूँ नीं अंजाम ऐ वाइ'ज़
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मेरे मौला तिरी मंतिक़ भी अजब मंतिक़ है
होंट पे प्यास रखी आँख में दरिया रक्खा