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ग़ज़ल
धीरे धीरे ख़ुद को निकालें इस बंधन जकड़न से
संग किसी आवारा मनुश के हौले हौले हो लें
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
पल में मनुश है राम पुजारी पल में चेला रावन का
पाप और पुन के बीच का धागा देखो कितना कच्चा है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो