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ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-ग़म में यूँ तो देर तक जला चराग़
न जाने क्यूँ थका थका उदास उदास था चराग़
नाज़िर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
नक़ीब-ए-सुब्ह तो थे हम रहीन-ए-शाम-ए-ग़म निकले
बड़े झूटे तिरे वा'दे तिरे क़ौल-ओ-क़सम निकले
मोहम्मद अली ताज
ग़ज़ल
वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया
तड़पने लोटने का दम फ़ना होने का वक़्त आया
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
शाम-ए-ग़म आँखों से आँसू आस्तीं पर गिर पड़े
या कि थे दामन में कुछ मोती ज़मीं पर गिर पड़े
हसरत शादानी
ग़ज़ल
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
शाम-ए-ग़म है तिरी यादों को सजा रक्खा है
मैं ने दानिस्ता चराग़ों को बुझा रक्खा है