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ग़ज़ल
निदा आई कि आशोब-ए-क़यामत से ये क्या कम है
गिरफ़्ता चीनियाँ एहराम ओ मक्की ख़ुफ़्ता दर बतहा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दुख मुझे इस बात का है मैं अकेला रह गया
मेरी बस्ती के मकीं सब उस किनारे मर गए