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ग़ज़ल
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
मुरव्वत हुस्न-ए-आलम-गीर है मर्दान-ए-ग़ाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नसब हो या हसब दोनों मुबारक होवें ज़ाहिद को
तुझे तो है फ़क़त 'मर्दां' शह-ए-अबरार से मतलब
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
तुम भी 'ग़ाज़ी' की तरह दिल के एवज़ जाँ दे दो
इश्क़-ए-कामिल का मज़ा बस इसी तदबीर में है
यूनुस ग़ाज़ी
ग़ज़ल
वक़्त की होती हैं 'ग़ाज़ी' सब करिश्मा-साज़ियाँ
मुंकिर-ए-तक़दीर को भी माइल-ए-तक़दीर देख
यूनुस ग़ाज़ी
ग़ज़ल
तेग़-ए-ख़ालिद तेग़-ए-तारिक़ इश्क़ की ही इंतिहा है
इश्क़ मुख़्लिस सरफ़रोशी इश्क़ मैदाँ में है 'ग़ाज़ी'
इरफ़ान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
हुए जो ग़ोता-ज़न इश्क़-ए-मोहम्मद में सुनो 'ग़ाज़ी'
हुई न फिर कभी उन की शनासाई किनारों से