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ग़ज़ल
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या सुनाऊँ हाल-ए-दिल ऐ महव-ए-ख़्वाब-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़
हो चुकी है ज़िंदगी वक़्फ़-ए-फ़ुग़ाँ तेरे बग़ैर
मज़हरुल क़य्यूम मज़हर
ग़ज़ल
बहार-ओ-बहजत-ओ-इज़्ज़-ओ-वक़ार उस पे निसार
ज़बाँ से माल से जाँ से जो ज़ालिमों से लड़े
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
कोई नाज़ुक-बदन मिलता है जब अज़-राह-ए-बेगाना
तबीअत भीग जाती है तो उन की याद आती है