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ग़ज़ल
न थे रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ कल शब जहाँ मैं था
बहारें थीं न था ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ कल शब जहाँ में था
नईम हामिद अली
ग़ज़ल
कैफ़ सा अब हो गया पैदा ग़म-ए-‘अय्याम में
क्या तिलिस्म-ए-सरख़ुशी है दौर-ए-सुब्ह-ओ-शाम में
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हमीं पे रंज-ओ-अलम गो हज़ार गुज़रे हैं
जहाँ से गुज़रे हैं हम नग़्मा-बार गुज़रे हैं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
गुलशन-ए-इल्म की निकहत हूँ गुल-ए-तर मैं हूँ
क़द्र-दाँ जिस के सभी हैं वो सुख़नवर मैं हूँ
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-आलम-ए-हस्ती मोअ'त्तर है हमीं से आज
हमारा ही सदा से क़र्ज़ है आती बहारों पर
रशीद ख़ाँ रज़ा
ग़ज़ल
हमीं हर दौर में थे गर्दिश-ए-अय्याम के मारे
मगर हम से इलाज-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है 'सूफ़ी'
सग़ीर अहमद सूफ़ी
ग़ज़ल
ख़ुद मिरी हस्ती है 'माहिर' आलम-ए-अनवार-ए-हुस्न
जल्वा-गाह-ए-दोस्त हूँ समझो ख़ुदा-ख़ाना मुझे
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते
कि ये शो'ला न बन जाता अगर शबनम तो क्या करते
हमीद नागपुरी
ग़ज़ल
जब चला क़ाफ़िला यारों का सू-ए-मुल्क-ए-अदम
हमीं तय्यार हुए बाँग-ए-दरा से पहले