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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ख़ता तो दिल की थी क़ाबिल बहुत सी मार खाने के
तिरी ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध कर मारा तो क्या मारा