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ग़ज़ल
बहुत देखे हैं मैं ने मशरिक़ ओ मग़रिब के मय-ख़ाने
यहाँ साक़ी नहीं पैदा वहाँ बे-ज़ौक़ है सहबा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में
तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
अदा-ओ-नाज़ सूँ आता है वो रौशन-जबीं घर सूँ
कि ज्यूँ मशरिक़ सूँ निकले आफ़्ताब आहिस्ता-आहिस्ता
वली दकनी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़ाहिदो क्या सू-ए-मशरिक़ नहीं अल्लाह का घर
का'बे जाना था तो तुम लोग उधर क्यूँ न गए
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
लिपट के रोने लगे मुझ से शाइर-ए-मशरिक़
जब उन को क़ौम की हालत बता रहा था मैं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
कैसी गुल-रंग है मशरिक़ का उफ़ुक़ देख नदीम
नदी का ख़ूँ रात की चौखट पे बहा हो जैसे
सय्यद एहतिशाम हुसैन
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बिस्तर-ए-मशरिक़ से सूरज ने उठाया अपना सर
किस ने ये महफ़िल में ज़िक्र-ए-हुस्न-ए-यक्ता कर दिया
एहसान दानिश
ग़ज़ल
मशरिक़ पे भी नज़रें हैं मग़रिब पे भी नज़रें हैं
ज़ालिम के तख़य्युल की लम्बान अरे तौबा
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का
तुलू-ए-सुब्ह-ए-महशर चाक है मेरे गरेबाँ का
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
'शफ़ीक़' आसार हैं मशरिक़ की जानिब ताज़ा किरनों के
ये मेरी शाम-ए-नौ की चाँदनी मालूम होती है