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ग़ज़ल
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट न देते जो न बादा-ख़्वार होता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा
जिस के हाथों में थे टूटे हुए पर शाम के बा'द
फ़रहत अब्बास शाह
ग़ज़ल
मस्त नज़रों से अल्लाह बचाए मह-जमालों से अल्लह बचाए
हर बला सर पे आ जाए मेरी हुस्न वालों से अल्लह बचाए