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ग़ज़ल
मिरे मास्टर न होते जो उलूम-ओ-फ़न में दाना
कभी मौला-बख़्श-साहब का न मैं शिकार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
बैठे हैं अपनी सीट पर कैसे भगाएँ मास्टर
आए हैं दे के फ़ीस हम कोई हमें भगाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
बुलंदी पर पहुँचना है तो पैदा ख़ाकसारी कर
बड़ा बन ने की ख़्वाहिश है तो इज्ज़-ओ-इंकिसारी कर
मास्टर निसार अहमद
ग़ज़ल
अदावत से अगर तू बे-ख़बर होता तो अच्छा था
तिरे दिल पर मोहब्बत का असर होता तो अच्छा था
मास्टर निसार अहमद
ग़ज़ल
अदावत दिल में रखते हो ज़बाँ पर प्यार क्या मतलब
कभी नफ़रत कभी उल्फ़त का है इज़हार क्या मतलब
मास्टर निसार अहमद
ग़ज़ल
हम अपनी जान से ऐ बुत बहुत बेज़ार बैठे हैं
भरी बरसात में आकर पस-ए-दीवार बैठे हैं
मास्टर बासित बिस्वानी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-दिल जो किसी मिस के हवाले होते
जितने गोरे हैं मुक़र्रर मिरे साले होते
मास्टर बासित बिस्वानी
ग़ज़ल
हाथ आया है सितमगर तू बड़ी घात के बाद
सब बता दूँगा मैं तुझ को मगर इक बात के बाद
मास्टर बासित बिस्वानी
ग़ज़ल
अदू कम्बख़्त को सौदा है कुछ ऐसा जुदाई का
लिए सर पर फिरा करता है ढाँचा चारपाई का
मास्टर बासित बिस्वानी
ग़ज़ल
बाग़बाँ ने जान रख ली बुलबुल-ए-नाशाद की
दस्त-ए-गुल-चीं तोड़ डाला टाँग ली सय्याद की