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ग़ज़ल
मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का
फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दीवाली का
मुमताज़ गुर्मानी
ग़ज़ल
गोरे गोरे चाँद से मुँह पर काली काली आँखें हैं
देख के जिन को नींद आ जाए वो मतवाली आँखें हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
'सहबा' कौन शिकारी थे तुम वहशत-केश ग़ज़ालों के
मतवाली आँखों को तुम ने आख़िर कैसा राम किया
सहबा अख़्तर
ग़ज़ल
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
आँखें झपकी जाती हैं मतवाली की सी सूरत है
जागे किस की सोहबत में जो नींद के इतने माते हो
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त की बातें ना-अहल-ए-मोहब्बत क्या जानें
मतवाली नज़र की गर्दिश भी दिलचस्प कहानी होती है
नवाब देहलवी
ग़ज़ल
नाज़ुक गर्दन पतली कमर थी चाल थी उस की मतवाली
आँखें नर्गिस को शरमाएँ मुखड़ा मा'सूमाना सा