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ग़ज़ल
बरसों बा'द मिला है मौक़ा' आओ लगा लें कश्ती पार
आज तो यारो सन्नाटा है दरिया के उस ओर बहुत
उमर अंसारी
ग़ज़ल
सोते में मरने का मौक़ा' मिल जाता है सब लोगों को
फिर भी ज़िंदा उठ जाते हैं लोगों की नादानी देखो
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
जो मौक़ा मिल गया तो ख़िज़्र से ये बात पूछेंगे
जिसे हो जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाए