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ग़ज़ल
मौक़े तो हम तक भी आए ख़ूब कमा खा लेते हम
लेकिन एक ज़मीर था भीतर अल्लाह की निगरानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
वो दुश्मन दोस्त बन कर घात में था अच्छे मौक़े की
पता उस दिन चला जिस दिन निहत्ता हो गया था मैं
शकील आज़मी
ग़ज़ल
लब-ए-बाम आ के दिखला वो तमाशा तूर का तुम भी
बड़े मौक़े से दर पर तालिब-ए-दीदार बैठे हैं
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
हर मौक़े की हर रिश्ते की ढेर निशानी उस के पास
एल्बम के हर इक फोटो की एक कहानी उस के पास
प्रताप सोमवंशी
ग़ज़ल
आख़िरी मौक़े पे हम ने ख़ुद ही उस से कह दिया
तुम किसी से दिल लगा लो अब नहीं आउँगा मैं