aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mavaaqe"
कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रखतू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
कई मवाक़े' मिरी ज़िंदगी में आए मगरकिसी पे हँस लिए इतना कि फिर हँसा न गया
माँग लेती है हवा अच्छे मवाक़े' देख करइक न इक मुट्ठी में रहता है शरारा हर जगह
कुछ ख़ास दौर होते हैं फ़न की नुमूद केअफ़सोस वो मवाक़े'-ए-'अर्ज़-ए-हुनर गए
रूठ जाते तो मनाने के मवाक़े' रहतेइस तरह छोड़ के दुनिया नहीं जाया करते
तिरे लिए तो मवाक़े' बहुत ज़ियादा हैंतू मसअलों में घिरा कोई शाहज़ादा नईं
मवाक़े' इश्क़ के वो अब कहाँ हैंअदाएँ यार की दर्द-ए-ज़बाँ हैं
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरेऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है
मक़ाम-ए-गुफ़्तुगू क्या है अगर मैं कीमिया-गर हूँयही सोज़-ए-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमनन सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ीलोग क्यूँ जश्न मनाने आए
महाज़-ए-इश्क़ से कब कौन बच के निकला हैतू बच गया है तो ख़ैरात क्यूँ नहीं करता
गुनगुनाते हुए और आ कभी उन सीनों मेंतेरी ख़ातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह
तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे हीहमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही
अल्लाह बचाए मरज़-ए-इश्क़ से दिल कोसुनते हैं कि ये आरिज़ा अच्छा नहीं होता
'तालिब' को ये क्या इल्म, करम है कि सितम हैजाने के लिए रूठ, मनाने के लिए आ
हर भिकारी पा नहीं सकता मक़ाम-ए-ख़्वाजगीहर कस-ओ-ना-कस को तेरा ग़म अता होता नहीं
कभी कभी तो बहुत याद आने लगते होकि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुएमैं ख़ुद से रूठ गया हूँ उसे मनाते हुए
अगर कुछ आश्ना होता मज़ाक़-ए-जब्हा-साई सेतो संग-ए-आस्तान-ए-का'बा जा मिलता जबीनों में
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books