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ग़ज़ल
पुर-कैफ़ बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
हाँ उन के नज़ारों ने भी दिल तोड़ दिया है
महेश चंद्र नक़्श
ग़ज़ल
मीठे गीतों की वो रिस्ना मीठी धुन और मीठे बोल
पूरन-माशी पर आँगन में शब-बेदारी होती थी
जानाँ मलिक
ग़ज़ल
ये तन्हाई हमें इक रोज़ तन्हा कर के मानेगी
चलो तन्हाइयों को हम ही तन्हा छोड़ देते हैं
शाद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जीता हूँ जो मर मर के ये जीना तो नहीं है
दुनिया मिरे एहसास की दुनिया तो नहीं है