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ग़ज़ल
मिस्ल-ए-तूती कल चहकता था वो बज़्म-ए-नाज़ में
आज गुम है 'मज़हर'-ए-शीरीं-ज़बाँ तेरे बग़ैर
मज़हरुल क़य्यूम मज़हर
ग़ज़ल
हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन
शोहरत-ए-ग़म के लिए रौनक़-ए-बाज़ार न बन
फ़ितरत अंसारी
ग़ज़ल
इश्क़-ओ-जुनूँ में ज़ीस्त को बर्बाद कर चुका
कहते हैं लोग 'मज़हर'-ए-आशुफ़्ता-सर मुझे
सय्यद मज़हर गिलानी
ग़ज़ल
मिरी ख़ुद्दार 'फ़ितरत' की ख़ुदा ही आबरू रक्खे
ख़िज़ाँ के दौर में अज़्म-ए-बहाराँ ले के चलता हूँ
फ़ितरत अंसारी
ग़ज़ल
तुझ से और चश्म-ए-तवज्जोह का गिला क्या मा'नी
तेरा फ़ितरत तिरे इख़्लास के क़ाबिल भी नहीं
फ़ितरत अंसारी
ग़ज़ल
चश्म-ए-फ़ितरत है बहार-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल की कफ़ील
अब्र उट्ठा झूम कर बरसा चमन लहरा गया