aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mazarat e"
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रतऐ ज़मीं माज़रत ऐ ख़ुदा माज़रत
गुमाँ ये था कि पस-ए-कोह बस्तियाँ होंगीवहाँ गए तो मज़ारात-ए-बे-निशाँ निकले
मोड़ महाराँ आ घर साईंसूना पड़ा है बिस्तर साईं
दिल है मसर्रत-ए-ग़म-ए-जानाँ लिए हुएलेकिन मलाल-ए-तल्ख़ी-ए-दौराँ लिए हुए
तुझ से ऐ मेरे सितमगर मा'ज़रतमा'ज़रत-दर-मा'ज़रत-दर-मा'ज़रत
ख़ुद-कलामी से भी रूठ जाती है तूअब न बोलूँगा ऐ ख़ामुशी माज़रत
सर-ए-मिज़ा अजब अजब चराग़ जल उठें अगरनवाह-ए-चश्म जश्न-ए-नौ-बहार हो तो मा'ज़रत
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
सुब्ह-दम आ जाएगा उस का पयाम-ए-माज़रतजिस की ख़ातिर आँख शब भर जागती रह जाएगी
गिला बरसों का है जितनी सफ़ाई दोगे उतना तूल पकड़ेगाअब हर्फ़-ए-माज़रत ही लन्तरानी का अहाता करने वाला है
मुंसिफ़ो हर्फ़-ए-माज़रत कैसाहर ख़ता हम ने सोच कर की है
कोई मसर्रत-ए-लज़्ज़त मुझे न दर्द का ग़ममिरी तो ज़ीस्त ही मस्ताना-वार गुज़री है
जहाँ से कुछ न मिले हुस्न-ए-माज़रत के सिवाये आरज़ू उसी चौखट पे शब गुज़ारती है
मानता हूँ कि वो मुख़ातिब नईंफिर भी ये ख़ामुशी तो वाजिब नईं
चश्म-ए-नमनाक मिरी ख़ुश्क हुआ चाहती हैंमा'ज़रत दोस्त कोई और समुंदर देखो
ग़ज़ल अपनी ज़मीन में लिक्खीरूह-ए-'ग़ालिब' से मा'ज़रत के साथ
क्या कहें क्या कुछ रहा क्या कह गएहम उन्हें बस देखते ही रह गए
अहल-ए-दुनिया नया नया हूँ मैंमा'ज़रत ख़्वाब देखता हूँ मैं
चश्म-ए-तर है कोई सराब नहींदर्द-ए-दिल अब कोई अज़ाब नहीं
नज़र मेरी बहकी क़दम लड़खड़ाएमोहब्बत में क्या क्या मक़ामात आए
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books