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ग़ज़ल
ईंट और पत्थर मिट्टी गारे के मज़बूत मकानों में
पक्की दीवारों के पीछे हर घर कच्चा लगता है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
बहुत मज़बूत लोगों को भी ग़ुर्बत तोड़ देती है
अना के सब हिसारों को ज़रूरत तोड़ देती है
जावेद नसीमी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तअल्लुक़ उन से टूटा था न टूटा है न टूटेगा
बहुत मज़बूत ज़ंजीर-ए-वफ़ा-दारी भी होती है