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ग़ज़ल
मिरे आबाद दिल को कर ख़राब उस ने कहा हँस हँस
कि मैं इस मुल्क का नाम अब ख़राब-आबाद करता हूँ
मीर हसन
ग़ज़ल
इश्क़ किया सो दीन गया ईमान गया इस्लाम गया
दिल ने ऐसा काम किया कुछ जिस से मैं नाकाम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मिरे उस्ताद को फ़िरदौस-ए-आ'ला में मिले जागा
पढ़ाया कुछ न ग़ैर-अज़-इश्क़ मुझ को ख़ुर्द-साली में