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ग़ज़ल
मैं अपने आप से नज़रें चुरा रहा हूँ क्यों
कि इस में राज़-ए-दिल-ए-ना-सुबूर कुछ तो है
मेराज अहमद मेराज
ग़ज़ल
यहाँ पे 'मेराज' तेरे लफ़्ज़ों की आबरू क्या
ये लोग बाँग-ए-दरा की क़ीमत लगा रहे हैं
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस तरफ़ वो तो इधर हम हैं परेशाँ 'बेबाक'
ख़्वाहिश-ए-दीद किसी तौर न टाली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मिल गया 'गौहर' तुम्हें भी ज़ीना-ए-मेराज-ए-इश्क़
ग़ैर समझे थे कि तेरी आह बे-तासीर है