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ग़ज़ल
फूल गुल-दान में रखते हैं सभी मेज़ों पर
नाम काग़ज़ पे तिरा लिख के सजाता है कोई
सय्यद सोहैब हाशमी
ग़ज़ल
मज़े ऐश ओ तरब लज़्ज़त लगे यूँ टूट कर गिरने
कि जैसे टूट कर मेवों के होवें ढेर आँधी में
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
लकड़ी की दो मेज़ें हैं इक लोहे की अलमारी है
इक शाइर के कमरे जैसी हम ने उम्र गुज़ारी है