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ग़ज़ल
गए वो दिन कि दिल सरमाया-दार-ए-दर्द-ए-पैहम था
मगर आँखों की अब तक मीर-सामानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मैं बे-नियाज़ हूँ मिरा सामान पूछिए
बैठा हुआ हूँ रख़्त-ए-क़नाअत लिए हुए