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ग़ज़ल
मेरे ग़म-ख़ाने की क़िस्मत जब रक़म होने लगी
लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रखते हैं हम मक़सद-ए-तामीर-ए-नौ पेश-ए-नज़र
गरचे हैं मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी हनूज़
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
जान कर मिन-जुमला-ए-ख़सान-ए-मय-ख़ाना मुझे
मुद्दतों रोया करेंगे जाम ओ पैमाना मुझे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा
मगर मिन-जुमला-ए-आदाब-ए-ग़म-ख़्वारी है ग़म मेरा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
अब ये आलम है कि मरने पे चले आएँ जो दोस्त
वो भी मिन-जुमला-ए-अरबाब-ए-वफ़ा होते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
जहाँ सामान वहशत के उसे वहशत-सरा कहिए
जहाँ अस्बाब-ए-वीरानी वो वीराना है घर क्या है
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उड़ती रहती थी सदा ख़ित्ता-ए-वीरान में ख़ाक
आ गई चुपके से अब के मिरे दालान में ख़ाक