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ग़ज़ल
सब रक़ीबों से हों ना-ख़ुश पर ज़नान-ए-मिस्र से
है ज़ुलेख़ा ख़ुश कि महव-ए-माह-ए-कनआँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तू अभी रहगुज़र में है क़ैद-ए-मक़ाम से गुज़र
मिस्र ओ हिजाज़ से गुज़र पारस ओ शाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न अब वो जल्वा-ए-यूसुफ़ न मिस्र का बाज़ार
न अब वो हुस्न के तेवर, न अब वो दीवाने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
'फ़ैज़' न हम 'यूसुफ़' न कोई 'याक़ूब' जो हम को याद करे
अपनी क्या कनआँ में रहे या मिस्र में जा आबाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़ैदी हूँ मैं तिरा ब-ख़ुदा-वंदी-ए-ख़ुदा
और उस अज़ीज़-ए-मिस्र के ज़िंदान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नसीम-ए-मिस्र को क्या पीर-ए-कनआँ' की हवा-ख़्वाही
उसे यूसुफ़ की बू-ए-पैरहन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सुनी न मिस्र ओ फ़िलिस्तीं में वो अज़ाँ मैं ने
दिया था जिस ने पहाड़ों को रा'शा-ए-सीमाब
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यूसुफ़-ए-मिस्र-ए-मोहब्बत कैसा अर्ज़ां बिक गया
नक़्द-ए-दिल क़ीमत हुई इक बोसा बैआ'ना हुआ
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
आज मगर इक नार को देखा जाने ये नार कहाँ की है
मिस्र की मूरत चीन की गुड़िया देवी हिन्दोस्ताँ की है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वही है मिस्र में हर कूचा-ओ-बाज़ार की रौनक़
मगर हर बिकने वाला यूसुफ़-ए-कनआँ' नहीं होता