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ग़ज़ल
बनूँ कौंसिल में स्पीकर तो रुख़्सत क़िरअत-ए-मिस्री
करूँ क्या मेम्बरी जाती है या क़ुरआन जाता है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दूल्हा ख़ुद भी लूट रहा है मिस्री बादाम और खजूर
ससुरे को भी मारे धक्का ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
बारिश छप्पर तेज़ हवाएँ मिस्री जैसे सिंधी गीत
यार सराए के चूल्हे पर मीठा क़हवा पकता था
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
सोता है तो लेता हूँ मैं यूँ चोरी से बोसा
जूँ मुँह में खिला दे कोई मिस्री की डली चुप
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क्यूँ पास मिरे आ कर यूँ बैठे हो मुँह फेरे
क्या लब तिरे मिस्री हैं मैं जिन को चबा जाता
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
लब-ए-शीरीं है मिस्री यूसुफ़-ए-सानी है ये लड़का
न छोड़ेगा मेरा दिल चाह-ए-कनआनी है ये लड़का
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
लगे है तुर्श ज़ाहिर में पे है ये साँवला मीठा
मज़े-दारी में है गोया ये मिस्री की डली जामुन
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
यूँ तो सब मिस्री की डलियाँ हैं मगर 'ऐश' सुना
दिल-पसंद अपने हैं इक 'मीर' के अश’आर फ़क़त