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ग़ज़ल
दिखाए मोजज़े गर वो बुत-ए-अय्यार चुटकी में
तो बोले ताइर-ए-रंग-ए-हिना हर बार चुटकी में
नसीम भरतपूरी
ग़ज़ल
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए