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ग़ज़ल
मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
हमारी सारी मेहनत धूल-धानी होती जाती है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इलाही दर्द-ए-ग़म की सरज़मीं का हाल क्या होता
मोहब्बत गर हमारी चश्म-ए-तर से मेंह न बरसाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
अल्ताफ़ फ़र्ज़ है सितम-ए-ना-रवा के बाद
मेहर-ओ-वफ़ा भी चाहिए जौर-ओ-जफ़ा के बाद
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है
हर साँस दास्ताँ तिरे जौर-ओ-जफ़ा की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
कश्ती-ए-उम्र है तूफ़ान-ए-हवादिस में मगर
ग़र्क़ होती है ये ज़ालिम न रवाँ होती है