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ग़ज़ल
किस क़दर तम्हीद रंगीं है शब-ए-आलाम की
मुझ को मुझ से छीने लेती हैं फ़ज़ाएँ शाम की
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
दिल हुआ वीराँ मता-ए-चश्म-ए-नम जाती रही
रफ़्ता रफ़्ता शोरिश-ए-तब-ए-अलम जाती रही
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
ग़ज़ल
तमाम उम्र किसी का सहारा मिल न सका
मैं ऐसा दरिया था जिस को किनारा मिल न सका
मोहम्मद सिद्दीक़ नक़वी
ग़ज़ल
पस-ए-शाम-ए-अलम किसी महर-ए-निगाह को देखते थे
वो लोग कहाँ मिरे हाल-ए-तबाह को देखते थे
मोहम्मद ख़ालिद
ग़ज़ल
कुछ लुत्फ़ ख़मोशी में न आहों में मज़ा है
बे-कैफ़ी-ए-दिल इन दिनों कुछ हद से सिवा है
अब्दुल हई आरफ़ी
ग़ज़ल
चैन कब आता है घर में तिरे दीवाने को
फिर लिए जाती है वहशत मुझे वीराने को