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ग़ज़ल
इक ताज़ा मोहर-ए-लब से जुनूँ माँगता है नक़्श
जुम्बिश लबों की सिलसिला-आमेज़ अभी से है
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
बनी है मोहर-ए-लब पैहम मोहब्बत उस सितमगर की
बयाँ अब दास्तान-ए-दर्द-ए-फ़ुर्क़त हो नहीं सकती
फ़रोग़ हैदराबादी
ग़ज़ल
मुख़्तार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बंदा-ए-मोहर-ब-लब हूँ मैं सना-ख़्वाँ तेरा
दिल में रहता है मुक़फ़्फ़ल ग़म-ए-पिन्हाँ तेरा