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ग़ज़ल
सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी
रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ग़म हम ने ख़ुशी से मोल लिया उस पर भी हुई ये नादानी
जब दिल की उमीदें टूट गईं क़िस्मत से शिकायत कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सस्ते दामों बेच रहे हैं अपने-आप को लोग
मैं क्या अपना मोल बताऊँ क्या कह कर चिल्लाऊँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
तुझ से मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली
अब कभी तुझ से न बिछड़ूँ ये दुआ अपनी जगह
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
कभी तीर-ए-निगाह-ए-तुंद का बरसाव करते हो