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ग़ज़ल
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
उसे कह दो कि ये ऊँचाइयाँ मुश्किल से मिलती हैं
वो सूरज के सफ़र में मोम के बाज़ू लगाता है
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
जम्अ' किया ज़िद्दैन को तुम ने सख़्ती ऐसी नर्मी ऐसी
मोम बदन है दिल है आहन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ
नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद याँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
कभी तीर-ए-निगाह-ए-तुंद का बरसाव करते हो