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ग़ज़ल
'मीर' ओ 'क़तील' ओ 'मुसहफ़ी' ओ 'जुरअत' ओ 'मकीं'
हैं शा'इरों में ये जो नुमूदार चार पाँच
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ये सरकारी शिफ़ा-ख़ाने में जो बीमार लेटे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार लेटे हैं