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ग़ज़ल
मैं रंग बिरंगी मोरनी मिरे पंख बहुत मुम्ताज़
मिरा रक़्स अनोखा रक़्स है मुझे अपने आप पे नाज़
शुमामा उफ़ुक़
ग़ज़ल
चाल उस की मोरनी सी संग-ए-मरमर सा बदन
उस ने जब अंगड़ाइयाँ लीं रुत सुहानी हो गई