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ग़ज़ल
नवर्द-ए-हुस्न-ओ-तासीर-ओ-बुनत-कारी के बल के बा'द
हज़ारों साल में चश्म-ए-मोअन्नस झील होती है
तौहीद ज़ेब
ग़ज़ल
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जीत के भी वो शर्मिंदा है हार के भी हम नाज़ाँ
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा