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ग़ज़ल
असर इक सा है हम दोनों पे वाइज़ उस मुई मय का
वगर्ना तेरी मेरी इक भी तो आदत नहीं मिलती
आज़िम गुरविंदर सिंह कोहली
ग़ज़ल
जो पूछा मैं ''कहाँ थी'' तू हँस के यूँ बोली
''मैं लग रही थी उस अंगिया मुई के सीने में''
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो पूछा मैं कि कहाँ थी तो हँस के यूँ बोली
मैं लग रही थी इस अंगिया मुई के सीने में
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
जेब अपना गुल ने फाड़ा बुलबुल मुई 'मुरव्वत'
क्यूँ अपने ग़म का क़िस्सा तू ने कहा चमन में