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ग़ज़ल
जब झुकाने लगी दुनिया यहाँ मेआ'र-ए-इश्क़
तब चले आए बचाने उसे बीमार-ए-इश्क़
डॉ. मुबश्शिरा सदफ़ ' ग़ज़ल'
ग़ज़ल
सुना रहे हैं कोई गीत रास्ते मुझ को
ये कह रहे हैं मिरे पाँव कान दे मुझ को
डॉ. मुबश्शिरा सदफ़ ' ग़ज़ल'
ग़ज़ल
ख़्वाब में भी न कभी उन से मुलाक़ात हुई
हमें हासिल न कभी वज्ह-ए-मुबाहात हुई
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़ज़ल
मुनाफ़रत के ख़सारे में ख़ुश-ख़िराम रहे
सरिश्त-ए-आदम-ए-ख़ाकी में ख़ू-ब-ख़ू क्या है