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ग़ज़ल
ख़ुद से मिलने के लिए ख़ुद से गुज़र कर आया
किस क़दर सख़्त मुहिम थी कि जो सर कर आया
कैफ़ी विजदानी
ग़ज़ल
रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल
बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं