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ग़ज़ल
बे-सबब ऐ दिल-ए-नादाँ कहीं लौटा तो नहीं
उस ने आवाज़ ही दी है तुझे रोका तो नहीं
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
बला का शोर-ओ-फ़ुग़ाँ है निहाँ ख़मोशी में
मैं खुल के सामने आया हूँ पर्दा-पोशी में
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
दश्त-ए-रुस्वाई ही बनता है मुक़द्दर उस का
इश्क़ जिस जिस का भी रहबर नहीं होता यकसर
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
है वो इस दर्जा मुकर्रम कि नहीं जिस का हिसाब
ख़ालिक़-ए-कौन-ओ-मकाँ है बुत-ए-तन्नाज़ नहीं
ग़ुबार किरतपुरी
ग़ज़ल
मैं ने कहा था साहिब-ए-किरदार नहीं है
मसनद-नशीं है साहिब-ए-दस्तार नहीं है
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
यही कहा था कि ख़स्ता-ज़बाँ में बात न कर
अब इतनी बात पे तर्क-ए-त'अल्लुक़ात न कर
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
ना'त कहते हुए इम्कान में आ जाते हैं
लफ़्ज़-ए-तकवीन से विज्दान में आ जाते हैं