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ग़ज़ल
मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
बोलियाँ ज़माने की मुख़्तलिफ़ तो होती हैं
लफ़्ज़ प्यार के लेकिन हर ज़बाँ में निकलेंगे
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
मिरी कहानी तिरी कहानी से मुख़्तलिफ़ है
कि जैसे आँखों का पानी, पानी से मुख़्तलिफ़ है
अज़हर अब्बास
ग़ज़ल
ग़ाज़ा-ए-ग़म एक था थे सब के चेहरे मुख़्तलिफ़
ग़ौर से देखा तो कोई शक्ल अनजानी न थी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
एक शब के टुकड़ों के नाम मुख़्तलिफ़ रखे
जिस्म-ओ-रूह का बंधन सिलसिला है ख़्वाबों का
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
कर दिए हैं ज़िंदगी ने मुख़्तलिफ़ हिस्से मिरे
मुझ से मिलना है अगर बट कर कई सायों में आ