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ग़ज़ल
राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना
समझा जाता था वली लग़्ज़िश-ए-पा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना
क्या वो मद-मस्त न था लग़्ज़िश-ए-पा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
'मुल्ला' का गला तक बैठ गया बहरी दुनिया ने कुछ न सुना
जब सुनने वाला हो ऐसा रह रह के पुकारा कौन करे
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ज़िंदगी 'मुल्ला' की है महजूब नाम-ए-ज़िंदगी
रह गई है शाइ'री ही शाइ'री तेरे बग़ैर
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
जो 'राज़' मुल्क में अम्न-ओ-अमाँ की बात करे
अब उस के वास्ते ज़िंदाँ है क्या ग़ज़ल कहिए
राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल
फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है
वर्ना नग़्मा वही हर पर्दा-ए-आवाज़ में है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
चीज़ दिल है रुख़-ए-गुलफ़ाम में क्या रक्खा है
कैफ़ सहबा में है ख़ुद जाम में क्या रक्खा है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
हर जल्वे पे निगाह किए जा रहा हूँ मैं
आँखों को ख़िज़्र-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
मिरे जिगर की ताब देख रुख़ की शिकस्तगी न देख
फ़ितरत-ए-आशिक़ी समझ क़िस्मत-ए-आशिक़ी न देख
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया
और वो ये समझे कि मुझ को रंज सहना आ गया