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ग़ज़ल
मिलेगा मुल्क-ए-ख़ूबी या मताअ-ए-सरगिरानी
मैं अपने नाम का सिक्का रवाँ करता रहूँगा
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मुल्क-ए-तरब के रहने वालो ये कैसी मजबूरी है
होंटों की बस्ती में चराग़ाँ दिल के नगर इतने सुनसान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तुम्हें दरिया-ए-ख़ूबी कह दिया ग़र्क़-ए-नदामत हूँ
कहाँ ये नाज़-ओ-ग़म्ज़ा आरिज़-ओ-काकुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इल्म-ओ-हुनर है मुल्क को दरकार आज-कल
हम ख़ुद भले-बुरे के हैं मुख़्तार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शाद लखनवी
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल मत करो ऐ नौ-बहार-ए-गुलशन-ए-ख़ूबी
तुम्हारे बिन निपट बे-आब है दिल का चमन प्यारे
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ऐ शम्अ'-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी दिल है वही हमारा
महफ़िल में आप जिस को परवाना जानते हैं
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
जब कहा मैं ने कि ऐ सर्व-ए-रियाज़-ए-ख़ूबी
किस का तू आफ़त-ए-जाँ है तो कहा तुझ को क्या
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
जो वो बहार-ए-अज़ार-ए-ख़ूबी चमन में आता ख़िराम करता
सनोबर-ओ-सर्व हर एक आ कर ज़रूर उस को सलाम करता