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ग़ज़ल
अगर होगा हमारा 'इल्म अपनी ज़ात पर ज़ाइद
मुमय्यज़ ख़ुद-बख़ुद हो जाएगा मशहूद से शाहिद
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
जहाँ वाले मुक़य्यद हैं अभी तक अहद-ए-तिफ़्ली में
यहाँ अब भी खिलौने रौनक़-ए-बाज़ार होते हैं
अब्बास क़मर
ग़ज़ल
ज़बानों पर उलझते दोस्तों को कौन समझाए
मोहब्बत की ज़बाँ मुम्ताज़ है सारी ज़बानों में
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
तेरे 'मुमताज़' को ग़म मौत का बस इस लिए है
अपने बालों में तुझे ख़ाक रवानी पड़ी थी
मुमताज़ गुर्मानी
ग़ज़ल
तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये ख़बर गई
तिरे शहर ही की ये शाएरा तिरे इंतिज़ार में मर गई
मुमताज़ नसीम
ग़ज़ल
हरीफ़-ए-वहशत-ए-नाज़-ए-नसीम-ए-इश्क़ जब आऊँ
कि मिस्ल-ए-ग़ुंचा साज़-ए-यक-गुलिस्ताँ दिल मुहय्या हो