आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "munderii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "munderii"
ग़ज़ल
काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है
आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
किसी की आँख से सपने चुरा कर कुछ नहीं मिलता
मुंडेरों से चराग़ों को बुझा कर कुछ नहीं मिलता
वसी शाह
ग़ज़ल
मैं दिए जलाऊँ मुंडेर पर कि ज़रूर आएगा वो इधर
इसी शाम वो किसी और सम्त रवाना हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
कच्ची मुंडेरों वाले घर में शाम के ढलते ही हर रोज़
अपने दुपट्टे के पल्लू से कोई चराग़ जलाता है
साबिर वसीम
ग़ज़ल
पानी की तक़्सीम के पीछे जलते खेत सुलगते घर
और खेतों की ज़र्द मुंडेरों पर कुम्हलाती दो-पहरें