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ग़ज़ल
अगर इस पे बैठ जाता कोई मुर्ग़-ए-ना-उमीदी
मिरा नख़्ल-ए-आरज़ू फिर कहाँ साया-दार होता
ज़ुल्फ़िकार नक़वी
ग़ज़ल
ये तंज़-ए-तर्क-ए-उल्फ़त गोशा-गीर-ए-ना-उमीदी पर
नहीं यूँ चुटकियाँ लेते नहीं दुखते हुए दिल में
मानी जायसी
ग़ज़ल
सुना है बे-नियाज़ी ही इलाज-ए-ना-उमीदी है
ये नुस्ख़ा भी कोई दिन आज़मा कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
बस हुजूम-ए-ना-उमीदी ख़ाक में मिल जाएगी
ये जो इक लज़्ज़त हमारी सई-ए-बे-हासिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ाक रहता इस हुजूम-ए-ना-उमीदी में निशाँ
मिट गए सब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ मिलता नहीं
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
आस क्या अब तो उमीद-ए-ना-उमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
अदा हो शुक्र क्यूँ-कर बे-कसी ओ ना-उमीदी का
रही हैं साथ फ़ुर्क़त में यही दो आश्ना बरसों
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
तेरे लब पर और हर्फ़-ए-ना-उमीदी ऐ नदीम
ये सितम अहल-ए-वफ़ा का राज़-दाँ होने के बाद
नाज़िश बदायूनी
ग़ज़ल
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी क्या क़यामत है
कि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ईफ़ी से नहीं पैरों के चीं पेशानी-ओ-रू पर
ये ख़त्त-ए-ना-उमीदी है कि रू-ए-पीर पर लिक्खा
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
हो गई मुश्ताक़ लज़्ज़त-हा-ए-हसरत मेरी आँख
और कान-ए-ना-उमीदी हैफ़ ये दिल हो गया
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
उम्मीदी-ओ-ना-उम्मीदी से रंज-ओ-ख़ुशी से बाला-तर
अब जो अगर देना तो मुझे तुम ऐसा आलम दे देना