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ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर बा-अदब यूँ हज़रत-ए-नासेह से मिलता हूँ
मुरीद-ए-ख़ास जैसे मुर्शिद-ए-कामिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वो मय दे दे जो पहले शिबली ओ मंसूर को दी थी
तो 'बेदम' भी निसार-ए-मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
मुर्शिद ही जानता है के क्या हादसा हुआ
मुर्शिद ही ने ये मुझ से कहा कुछ हुआ तो है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
तुझ को किस नाम से ऐ फ़ख़्र मिरे याद करूँ
बाप है पीर है मुर्शिद है ख़ुदा है क्या है
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
शहज़ादी दुख़्त-ए-रज़ के हज़ारों हैं ख़्वास्त-गार
चुप मुर्शिद-ए-मुग़ाँ है किसे दूँ किसे न दूँ
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
दुनिया की जुस्तुजू तो हुई ख़त्म कब की दोस्त
मुर्शिद हमारा इश्क़ है हम हैं गदा-ए-इश्क़